अगले कमरे से आ रही ठहाकों की आवाज़ में जगत न्यूज़ नहीं सुन पा रहे थे। उन्होंने टीवी बंद कर दिया और जाकर सबके साथ बैठ गए। बीते दिनों की बातें चल रही थीं।

“पापा आपको याद है बचपन में जब हम घूमने गए थे तब मम्मी खो गई थीं।” बेटे ने याद दिलाते हुए कहा।

“अच्छी तरह याद है। लोगों के बच्चे खोते हैं पर मेरे बच्चों की माँ खो गई थी।”

बच्चों में एक ठहाका गूंज उठा।

“बेकार की बात मत करो। खोई नहीं थी। बस थोड़ा पीछे रह गई थी।” पत्नी ने नाराज़ होते हुए कहा।

“बस इतना पीछे कि ढूंढ़ने में आधा घंटा लगा था।”

इसी तरह की बातों में काफी समय बीत गया। तभी पोतियों ने याद दिलाया कि घूमने भी जाना है। सब तैयार होने के लिए चले गए।
जगत अचानक उदास हो गए। बहार के इस मौसम के बस दो दिन बचे थे। उसके बाद एक साल का इंतज़ार था।