‘Bahut Dino Ke Baad’, a poem by Raginee
बहुत दिनों के बाद मिले तुम उसी मोड़ पर
जहाँ से शुरू हुए थे तुम
समय तुम्हारे बालों की सफ़ेदी
और चेहरों की झुर्रियों में
उतर आया है
तुम्हारी मुस्कराहट में छिपा संकोच
ज़ाहिर करता है तुम्हारी थकान
फिर भी तुम गर्व से बताते हो
अपनी महत्वकांक्षाओं की उड़ान
उपलब्धियों का विस्तार
तुमने बताया कि
तुम्हारे वातानाकुलित कक्ष
कितने आरामदेह हैं
तुम्हारे सुविधा सम्पन्न
समाज में तुम्हें
अकेलापन नहीं अखरता
अपनी भागदौड़ भरी
ज़िन्दगी तुम कितना एन्जॉय करते हो
तुम कही से कमज़ोर न दिखो
इसकी भरपूर कोशिश की तुमने
और मेरे दोस्त
तुम्हारी इसी कोशिश ने
मुझे उदास कर दिया।