“मूवी कैसी लगी…”
“बहुत बढ़िया थी यार, फुल पैसे वसूल हो गए।”
“चलो अब ज़रा कपड़े देख लेते है”, आकाश और शिवानी दोनों पैंटालून में घुस जाते है और कई कपड़े बदल-बदल कर चेक करने के बाद आखिरकार आकाश को तीन जीन्स और शिवानी को दो टॉप्स पसंद आये। आकाश ने काउंटर पर आकर पूछा- “हाउ मच?”
“1600 रुपीज़ ओनली।” और आकाश ने फ़ौरन एक गुलाबी रंग की नोट निकाल कर दे दी।
फिर दोनों कैफ़े-कॉफ़ी-डे गए और बातें करने लगें, आकाश बताने लगा कि “ओह देखो तो ज़रा ये महाराज लोग भी घूम रहें हैं, जनाब ने अदिति के साथ फेसबुक पर फोटो भी शेयर की है…”
शिवानी: “हाँ यार और लाइक्स भी अच्छे खासे आ गए हैं…”
इसी तरह की गुफ्तगू के कुछ देर बाद जुबांन हिलने की आवाज़ कम हो जाती है और मोबाइल पर उँगलियाँ चलने की आवाज़ ज़्यादा, ये तो कहो वेटर आकर सन्नाटा भंग कर देता है वरना कुछ पता नहीं कब तक स्क्रीन पर उँगलियाँ चलती रहती।
कॉफ़ी पीते-पीते अचानक आकाश कहता है- “ओह शेट! तुम्हें मैं बताना ही भूल गया कि पापा ने मुझे इस दिवाली पर आइफोन 8 देने का वादा किया है।”
“क्या बात कर रहे हो? सच?”
“हाँ हाँ सच में..”
“तो चलो इसी बात पर आज पार्टी तुम्हारी तरफ से क्या कहते हो?”
“ठीक है फिर शाम में चौक वाले रेस्टोरेंट पे मिलना?”
“ओके नो प्रॉब्लम…सी यू देन।”
आकाश बाहर आकर रिक्शा पकड़ता है और कहता है- “भैया जवाहर नगर चलो” और भारी चिल-पो के बीच कुछ देर बाद रिक्शावाला उतर कर रिक्शा खीचने लगता है। एक तो गर्मी शिद्दत की, ऊपर से ये चढ़ाई.. जैसे-तैसे वो रिक्शा खीचता है और पन्द्रह मिनट बाद, “भैया किधर मोड़े” पूछता है!
“बस जहाँ वो गार्ड बैठा है ना, उसी सोसाइटी में अन्दर ले लो।”
“ये लो पैसे।”
“भैया ये कम है तीस रूपये होते है, आप चाहे जिससे पूछ लोजिये।”
“अरे मुझको सब मालूम है रोज़ाना आता-जाता हूँ समझे, तुम लोगों का दिमाग कुछ ज्यादा ही खराब हो गया है।”
“नहीं भैया, आप चाहे किसी से भी पूछ लोजिये, चढ़ाई की तरफ से इतने ही पड़ते हैं।”
आकाश गुस्से में एक नोट और देता है और कहता है- “अब बीस से ज्यादा नहीं दूंगा, समझे!” और घर की तरफ चला जाता है।
रिक्शावाला कुछ हिसाब लगाता है कि पचास रुपये लल्लन सेठ का किराया, गुप्ता जी का उधार, फिर राजू के लिए दीपावली के कपड़े और… बड़ी मायूस सी शक्ल मानो बस रोने ही वाला हो। पैसे उठाता है और फिर किसी और की गाली सुनने को चल देता है।
आकाश घर आकर बड़े चाव से सबको बताता है कि “आज एक रिक्शेवाले को सबक सिखा दिया मुझसे पैसे ऐंठ रहा था, लेकिन मैंने भी उसे रख कर झाड़ दिया कि मैं भी यहीं का हूँ, सब जानता हूँ और बस बीस रुपये में उसे वापस भेज दिया।”
इस पर उसकी बुआ कहती है- “तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, हम लोगों ने आज सब्जी खरीदी और ठेले वाले ने कहा कि 120 रूपये हुए मगर हमने भी उसे बास्केट में सिर्फ सौ 100 की ही नोट रख कर भेजी, थोड़ी देर तो वो चिल्लाया कि दीदी ‘घाटा हो जायेगा’, ‘घाटा हो जायेगा’ मगर फिर चला गया।
सब कहकहा लगा कर ‘टीवी रूम’ की तरफ चल देते हैं।