मैं हूँ सिमटी-सिकुड़ी हुई
माघ की रात की एक वस्त्रहीन लड़की
जिसकी देह पर कपड़े नहीं हैं
अपनी कोमल उँगलियों को
मोड़कर रखती हूँ हथेलियों में।
नाच उठी थी आँगन में कल, गीत-संगीत की धुन पर
उठा लिया था सिर पर आसमान।
जीवन बहता चला गया बेमतलब पानी की तरह
रह गया आँखों के सामने धूसर किनारा
और किनारे में नदी…
आतंकित और ख़ामोश बैठी हूँ
अकेली अँधेरे कमरे में
बन्द मुट्ठी के खुलते ही
खो न जाएँ कहीं मेरे स्वप्न।
तस्लीमा नसरीन का आत्मकथ्य 'कैसा है मेरा जीवन'