Poem: ‘Because I Could Not Stop For Death’
Poetess: Emily Dickinson
भावानुवाद: नम्रता श्रीवास्तव
यद्यपि
मृत्युपरांत यात्रा पर अग्रसर हो चुकी थी मैं
पर याचना करके उस काल ने मुझे रोका
उसके रथ में हम थे, अमरत्व था
रथ-गति मंथर थी, वो जैसे वेग से अपरिचित
और धर दिया परे मैंने
अपनी मेहनत को, अपनी फ़ुरसत को
उसके समर्पण में
हम पाठशालाओं से गुज़रे, जहाँ
छुट्टियों में कलरव करता था बचपन
हमें ताकती फ़सलों के खेतों से हम गुज़रे,
फिर अस्त होते सूर्य से गुज़रे हम।
बल्कि हम अस्त हो गए (सम्भवतः)
शीतल बूदें ओस की निस्पंद लगीं करने
तन पर मेरे एक झीना वसन था,
जिस पर थी ओढ़ी मैंने रेशम की चूनर
सदन, जिसके सामने हमने विराम लिया
प्रतीत हुआ जैसे भूमि में एक गाँठ-सा
एक छत नगण्य-सी
और… धरती में गड़े हुए छज्जे
सदियाँ बीत चुकी हैं, तब से अब तक
पर जैसे यह कल की ही बात हो
मुझे पहले ही अनुमान था
रथ के अश्व अनन्त-कालगामी थे।