1
जीवन में स्वयं के पराजय का दुःख
उतना कभी नहीं रहा
जितना कभी बहन के उदास चेहरे को देखने-भर से हुआ
मैं उन सभी आन्दोलनों में शामिल हुआ
जो ला सकते थे बहन के चेहरे पर ख़ुशी
कई बार बहन के घर से लौटते समय
बहन के साथ उसकी बेटी भी रोयी
बहन जिस नाम से पुकारती है मुझे
उसी नाम से उसकी बेटी अब पुकारती है
उसी नाम से दोनों रोते हुए
रोकते हैं हर बार
मैं चाहता तो पेड़ की तरह वहीं खड़ा रहता
पर मनुष्य की तरह दौड़ता रहा
बहन के आँसुओं ने उन स्थानों को नम किया
थककर जहाँ मैं खड़ा हुआ।
2
यह मैं जानता हूँ
कि बहनों ने मुझे अधिक प्रेम और मान दिया
मैं कई बार उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा
राखी के दिन
युद्ध विराम की घोषणा करती थी बहन ही
अब जब मैं ऐश्वर्य की बात करता हूँ
वह बात करती है प्रेम की
एक पुराने और सघन शहर में
वह दरवाज़े और खिड़कियों से बाहर
सड़क की ओर देखती है
मेरा रास्ता।
3
जब बहन को विदा किया
वह दूर किसी शहर चली गई घर बसाने
कितना रोयी थी
रोते हुए
देर तक काँपती रही वह
हम सब एक-दूसरे की हिचकियाँ सुनते रहे
मैं नहीं गया उसके साथ
रथ के टूटे पहिये की तरह धँसा रहा
अब जब बहन किसी और शहर में है
उसके पास कैसे जा सकता हूँ
जीवन की लड़ाई में कोई अवकाश नहीं है
इस निष्ठुर समय में सिर्फ़ बहन निष्पक्ष रही
बहन रही करुणा से भरी
जिस शहर में बहन रही, जब भी आया यह देखा
वह शहर मेरे लिए कभी कठोर नहीं हुआ
बहन ने कभी अनुचित नहीं कहा
बस इतना कहा—ठहर जाऊँ एक-दो दिन और उसके पास
जीवन की आपाधापी में बहन को कभी बता नहीं सका
वह जब कभी फ़ुर्सत में एकटक देखती है
आकाश की ओर
सारे तारे चिड़ियाँ बन जाते हैं।
'मैं अपने मरने के सौन्दर्य को चूक गया'