वो लड़कियाँ जिनके घर छूट गये
जिन्होंने घर छोड़ दिया
या जो लड़कियाँ भाग गईं
व्यवस्थाओं में ढलने के इनकार के साथ

ऐसी लड़कियों को सूँघ-सूँघ कर खोजा गया
पृथ्वी के अंतिम छोर से भी
और दफ़न कर दिया
मिट्टी में मिट्टी की तरह

उनके भागने की वजह हर बार प्रेम ही
नहीं रहा
मगर हर बार बदनामी एक ही तरह की हुई
भागने में

ख़ैर जो लड़कियाँ बच गईं
हत्याओं और आत्महत्याओं के षडयंत्र के बावजूद
पृथ्वी की परतों में छिपी रहती हैं जीवित
अपनी ख़ुद की ही जिम्मेदारी लिये
सुरक्षा सुनिश्चित करती हुई

उनके छूटे हुए घरों में
बिखरी पड़ी हैं उनकी जीवंत यादें
सभ्यताओं के अवशेषों की तरह
मगर घर के आँगन सूने हैं
उनके हाड-मासं के जीवन के बिना

घर की औरतें, चुपचाप छुपाती फिरती हैं
घर के सूनेपन को
अपने दिल की गहराइयों में
संहार की उफनती हुई भावनाओं के डर से

घर के पुरुष, बार-बार भुलाते हैं उनके द्वारा
प्यार से पुकारे हुए सम्बोधनों को
जो अभी भी घर किये हुए
मन के किसी कौने में
वे बनाए रखते हैं चट्टानों-सा
अपने इंसानी दिलों को
झूठे सामूहिक प्रदर्शन के लिए

पड़ोसियों की चुगलियों में अभी भी ताज़ा हैं
उन जवान लड़कियों के शरीर,
उनके दुस्साहस, उनकी चुनौतियाँ
वे याद दिला देते हैं
अक्सर आंखों से ही
वो तमाम चेतावनियाँ
जो वो हर बार देते थे
लड़कियों के परिजनों को

पृथ्वी की परतों में जिंदा लड़कियाँ
याद करती हैं छूटी हुई जगह को
उन जगहों में जिए जा चुके जीवन को
सम्भाले हुए अपने सुख-दुःख
धोखे, प्रेम, पीड़ाएँ

ऐसे ही, जैसे सम्भालती हैं
औरतें कालान्तर से निरंतर
ज़िन्दा रहने के जोख़िम उठाते हुए…