हमने प्यार, दया का
भीख और स्नेह का फ़र्क़ जाना
नदियाँ खंगालीं, जंगल बुहारा।
पीठ पर फिराए गए हाथों का
शाबाशी और लिजलिजाहट का भेद जाना।
हमने समन्दर की गहराइयों में बैठकर
ऊँचे-नीले आसामानों की बातें कीं।
खारी बूँद कोरों पर सुखा
आलीशान सूरज निहारा।
आशंकाओं को निर्मूल साबित किया
कल्पनाओं को साकार किया।
नज़रों को और नियतों को परख
आँखों में उतर आए लाल डोरों को
अनदेखा करना सीखा।
भीड़ में दरेरी गयी छुअन से
अकेले में कुचले गए तन से
देर तक थरथराते मन से
एक गहरी साँस में बहटियाना सीखा।
कन्धों ने कभी ओढ़नी सम्भालना
तो कभी आँचल ढलकाना सीखा।
आँखों से शरमाना तो कभी खा जाना
बिस्तर समेटते-समेटेते
बिस्तर-सा बिछ जाना सीखा।
पायी गयी निशानियों पर
परेशानियों के ऊपर इठलाना सीखा।
हम हर रात अशुद्ध हुए
मुँह अंधेरे बाल धुलकर शुद्ध हो
पूजा के बरतन चमकाना सीखा।
महीने के दर्द को भुला
गरम सिंकाई करते हुए
पनीली आँखों से
भद्दे मज़ाक़ों पर खिलखिलाना सीखा।
तमाम दुनियादारी का पहाड़ा सीखा हमने
दुनिया का जोड़-घटाना सीखा।
कसकती चाहतों की लाशें ढोते हुए
खुलकर मुस्कुराना सीखा हमने।
रुचि की कविता 'योग्यता संघर्षरत है'