‘Bholu Aur Chandu’, a story for kids by Nidhi Agarwal
मास्टर जी ने कल के क्लास टेस्ट के पेपर्स बाँटे और कहा कि कल के टेस्ट में सर्वाधिक अंक भोलू और चंदू को मिले हैं।
मिट्ठू ने आश्चर्य से अपने हाथ के काग़ज़ को देखा, सिर खुजलाया और बोला, “मास्टर जी! मुझे भी पूरे दस में से दस मिले हैं।”
आश्चर्यचकित तो भोलू और चंदू भी थे। वह एक-दूसरे का चेहरा ताक रहे थे। अंततः भोलू ने हिम्मत जुटाकर कहा, “लेकिन मास्टर जी, हम दोनों तो कल स्कूल ही नहीं आए थे। हमने तो परीक्षा ही नहीं दी।”
मास्टर जी अर्थपूर्ण हँसी हँसे। बोले, “हम सभी सही हैं। आप सब अपनी जगह बैठ जाओ। मैं बताता हूँ।”
वह बोले, “मिट्ठू बेटा, मैंने जो प्रश्रपत्र दिया था उसमें ज़रूर तुमने दस में से दस नम्बर पाए हैं लेकिन जो प्रश्रपत्र ज़िन्दगी ने दिया था, वह तुम करने से चूक गए।”
“भोलू और चंदू, तुम लोगों ने परीक्षा स्कूल की चारदीवारी के बाहर दी और पूरे मनोयोग से दी!”, उन्होंने आगे कहा।
बच्चे अभी भी असमंजस में थे। तब उन्होंने अपने बैग से एक अख़बार निकाला और सभी को दिखाया। अख़बार में तो भोलू और चंदू का फ़ोटो छपा था। वह दोनों स्कूल के पीछे के नाले में से एक छोटे से पिल्ले को बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे।
अब तो सारे बच्चे मास्टर जी के आसपास जुट गए।
“अखबार में तो बड़े-बड़े लोगो की फ़ोटो छपती है।”, शेरू ने ज्ञान झाड़ा।
वहीं चंदू और भोलू की बोलती बंद थी। समझ गए कि रंगे हाथों पकड़े गए हैं। सोच रहे थे तबियत का बहाना सुना देंगे मास्टर जी को, लेकिन अब कोई बचाव नहीं। कल गंदे हाथ और कपड़े ले घर पहुँचे तो माँ ने ख़ूब डाँट लगायी थी। फिर उस पिल्ले का नाम बड़े भैया के नाम पर महेश रखा तो उन्होंने बाँह मोड़ी थी। अभी तक दुख रही है… भोलू ने सोचा। और यह महेश मियाँ इतने नटखट कि रात को पिताजी के जूते में घुसकर सो गए थे। सुबह गीला बदबूदार जूता देख पिता जी ने आज ही उसे घर से बाहर छोड़ आने का हुक्म दिया था।
“इधर आओ भोलू और चंदू!”, मास्टर जी की स्नेहिल आवाज़ से कुछ हिम्मत पा वह आगे आ गए।
“तो बच्चों हुआ यूँ कि जब यह दोनों भाई स्कूल आ रहे थे तो स्कूल के पीछे इस बेचारे मासूम प्राणी की मदद करने रुक गए। आप में से भी कुछ और बच्चे वहाँ से निकले थे। कुछ ने रुक एक नज़र डाली, कुछ ने पत्थर मारे और हमारे मिट्ठू जी तो इस क़दर रास्ते भर पाठ याद करते आ रहे थे कि गनीमत समझो कि यह ख़ुद ही नहीं गिर गए।”
“मिट्ठू जी गिर जाते तब तो पूरी क्लास के बच्चे और उनके बस्तों की चेन बनानी पड़ती।”, नटखट गोपाल बोला। सारे बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े।
“चुप बदमाश, ऐसे नहीं बोलते।”, मास्टर जी ने डाँट लगायी लेकिन ना चाहते हुए भी वह भी बच्चों की हँसी में शामिल हो गए।
सारे बच्चे चंदू और भोलू से स्कूल की छुट्टी के बाद महेश से मिलवाने की ज़िद करने लगे और बच्चों की खुशियों के जुगनू के प्रकाश से ब्लैक बोर्ड पर लिखी आज की सूक्ति मानो जगमगाने लगी थी-
दया के छोटे-छोटे से कार्य, प्रेम के ज़रा-ज़रा से शब्द हमारी पृथ्वी को स्वर्गोपम बना देते हैं।
– जूलिया कार्नी
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