कोई बड़ी बात नहीं, महसूस करना
किसी भूखे इंसान का दर्द
जब भूख से जल रही हों
अंतड़ियाँ खुद की
बल्कि
भरपेट भोजन मिलने पर भी
अगर महसूस करते हो
किसी दूसरे के पेट की ज्वाला
और उसी में से बचा लेते हो
किसी भूखे के लिए कुछ निवाला
तो फिर बचा ले जाओगे
अपने भीतर की इंसानियत
जो संवेदनाओं के अभाव में
भूखी रहकर मर जाती है
भीतर ही भीतर…

और सुनो
फिर कोई भी इंसान
भूखा नहीं मरेगा।

दीपक सिंह चौहान 'उन्मुक्त'
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसम्प्रेषण में स्नातकोत्तर के बाद मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत. हिंदी साहित्य में बचपन से ही रूचि रही परंतु लिखना बीएचयू में आने के बाद से ही शुरू किया ।