‘Bhram’, a poem by Sonnu Lamba
इस नश्वर संसार में
स्थायित्तव ढूँढते रहते हैं हम
और एक दिन पाल ही लेते हैं भ्रम
कि सब कुछ चलता रहेगा
हमारे मन मुताबिक
तभी एक दिन छन से
कुछ टूट जाता है
अचानक
और बिखेर जाता है.. किरच किरच
हमारे उस भ्रम की
और
धीरे से खोल जाता है
वैराग की खिड़की
मृत्यु शाश्वत है… यहाँ
तभी इसको मृत्युलोक कहते हैं
असमय जाना… हमारे ही मापदण्ड हैं
कौन जाने समय की पोटली में क्या है…।