प्रीत मेरी ठुकरा दोगे,
पाषाण फिर बना दोगे?
क्षण भर कभी जिया होगा,
एहसास मेरा मिटा दोगे?
चौखट पर तेरी बीत गई,
मेरी आधी उम्र, लौटा दोगे?
दर्पण की चाह जगे भीतर,
सोया शृंगार जगा दोगे?
पीड़ा की उमस घोंट रही
अंतिम उपचार सुझा दोगे?
तेरा पता ढूंढते भटकी हूँ,
घर तक मुझको छुड़वा दोगे?
जो मेघ नयन के बरस पड़े,
हृदय से हृदय लगा दोगे?
अस्तित्व मेरा झुठला दोगे,
क्या सच में मुझे भुला दोगे?
21/02/19
रिया ‘प्रहेलिका’
रिया ‘प्रहेलिका’