लेखक अविनाश कल्ला की किताब ‘अमेरिका 2020 – एक बँटा हुआ देश’ दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र होने की दावेदारी करने वाले देश—अमेरिका—के राष्ट्रपति चुनाव का आँखों-देखा हाल बयाँ करने वाली किताब है। एक पत्रकार की चुनाव यात्रा के बहाने यह किताब अमेरिकी समाज की अनेक ऐसी अनजानी-अनदेखी सच्चाइयों को सामने लाती है, जो उसकी धारणाबद्ध, चमकीली और महाशक्तिशाली छवि के पीछे अमूमन छुपी रहती हैं। वाशिंगटन डीसी, न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, कैलिफ़ोर्निया और लास वेगास से परे कोविड-19 दौर के अमेरिका को सामने लाती एक दिलचस्प किताब है। ‘अमेरिका 2020’ राजकमल प्रकाशन के उपक्रम सार्थक से प्रकाशित हुई है!

प्रस्तुत है किताब का एक दिलचस्प अंश—

एक कोने में हम दोनों बारी-बारी से अपना वीडियो बना ही रहे थे, और अभी दो-दो रीटेक ही लिए थे कि हमने देखा, हमारे डायरेक्टर द्रोण दूर पार्किंग में दो महिलाओं से बात कर उन्हें कुछ ज्ञान दे रहे थे। डायरेक्टर साहब ने हमें अपनी ओर आने का इशारा किया।

“मिलिए डेब और डियान से। ये दोनों बहनें डेब के घर का सामान स्टोरेज में रखने आयी हैं।” और उनका दो गाड़ियों में भरा सामान और उम्र का लिहाज़ करते हुए, द्रोण महाशय ने मदद की पेशकश कर दी।

डेब रिटायर्ड सिविल सर्वेंट हैं और डियान एक स्कूल टीचर। डेव मिनियापोलिस से शिफ़्ट कर रही हैं और अपना सामान यहाँ रखने आयी हैं। अगले 45 मिनट हम तीनों मिलकर उनका सामान स्टोर में रखते हैं। वो हमारा धन्यवाद कर पूछती हैं, “आप लोगों को क्या सूझी अभी यात्रा करने की।” जब हम उन्हें अपना मक़सद बताते हैं तो वे कहती हैं, “काश, हम आपकी कोई मदद कर पाते।”

“आप हमारे कुछ सवालों का जवाब दे सकती हैं, यही बड़ी मदद होगी।” अकील ने कहा। “इस महामारी के चलते आपके जीवन में कोई बदलाव आया है, आप सरकार के काम को कैसे देखती हैं, क्या देश अभी सही दिशा में जा रहा है और चुनाव में किसको बढ़त में देखती हैं आप?” एक साथ चार-पाँच सवाल अकील ने पूछ डाले।

सवाल सुन वो दोनों एक-दूसरे को देख मुस्करायीं।

“क्या हुआ?” मैंने पूछा।

“कुछ नहीं, आपने ये सवाल दो अलग-अलग विचार रखने वालों से पूछे हैं, इनमें से किसी एक सवाल पर भी हमारी राय एक नहीं है।” डेब ने कहा।

“अच्छा है हमारे लिए।”

“पहले तुम बोलो, तुम छोटी हो।” डेब ने डियान को कहा।

“मेरी समझ में, हमें समझदारी से और सतर्क रहने की ज़रूरत है। यह कठिन समय है और हर किसी को अपना ख़याल ख़ुद रखना होगा तभी हम सुरक्षित रह सकेंगे। सरकार जितना कर सकती है, कर रही है पर हम जब तक ख़ुद सचेत नहीं होंगे, हम सुरक्षित नहीं हैं।” डियान ने कहा।

“क्या सारी ज़िम्मेदारी हमारी ही है, सरकार की नहीं? स्कूल, कॉलेज खोलकर वो बच्चों को ख़तरे में डाल रहे हैं।” डेब ने बीच में कहा।

“तुम बीच में मत बोलो।” डियान ने कहा।

“मैं समरसेट मिडिल स्कूल में हिस्ट्री पढ़ाती हूँ, हम सभी प्रोटोकॉल का पालन करते हैं और स्कूल हाइब्रिड मॉडल पर चल रहा है, आधी क्लास हफ़्ते में दो दिन आती है, बाक़ी आधी एक दिन छोड़ बचे हुए दो दिन में। वो भी सिर्फ़ अपनी समस्या पूछने के लिए, हम बच्चों को लैपटॉप का क़ैदी नहीं बना सकते। और युवा बच्चों और युवाओं में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। अभी तक हमारे स्कूल में कोई भी पॉज़िटिव नहीं है।” डियान बोली। “रही बात सरकार की, तो मुझे लगता है ट्रम्प जो कुछ कर सकते थे, उन्होंने किया। अगर डेमोक्रेट्स भी होते तो कुछ भी अलग नहीं कर पाते। कहना आसान होता है जब आप विपक्ष में हों।”

“यह ट्रम्प समर्थक है, इसे उसमें कोई कमी नहीं दिखती।”, डेब फिर चुटकी लेते हुए बोली।

“तुम फिर शुरू हो गईं| इन्हें मुझे टोकने और मेरी बात काटने में मज़ा आता है।” डियान हँसकर बोली।

“तुम गुणगान जारी रखो।” जेब ने एक बार फिर तंज कसा।

“मुझे शुरू में ट्रम्प पसन्द नहीं थे, वे बड़बोले और बदमिज़ाज लगते थे। पर धीरे-धीरे मैंने देखा, पहले के किसी भी राष्ट्रपति से ज़्यादा उन्हें परखा जा रहा है तो मैंने उनके काम को ग़ौर से देखना शुरू किया। मुझे उनका काम पसन्द आया, वे जो कहते हैं, करते हैं। अमेरिका फ़र्स्ट का उनका मंत्र अच्छा है, मुझे लगता है, क्योंकि वे पॉलिटिकल क्लास से नहीं आते, सब राजनेता और पत्रकार उन्हें नापसन्द करते हैं, आप उन्हें ट्रम्प के तौर पर नहीं बल्कि अमेरिकन राष्ट्रपति के तौर पर देखें तो आप उन्हें बेहतर पाएँगे।” डियान ने अपनी बात ख़त्म की।

“बोल लिया तुमने या कुछ और भी कहना है?” डेब ने मुस्कुराकर पूछा।

“नहीं, अभी इतना ही।” डियान बोली।

“मेरी छोटी बहन, अभी भी भावनाओं में बह जाती है।” डेब ने डियान के गाल खींचते हुए कहा। “मैंने इससे थोड़ी ज़्यादा दुनिया देखी है। 37 वर्ष तक सरकार में अलग-अलग पद पर काम करते हुए मुझे अनुभव हुए हैं, उनकी मानें तो ट्रम्प न केवल इस महामारी में, बल्कि अपने क़रीब चार साल के कार्यकाल में सिर्फ़ बातों का पुलिन्दा ही रहे हैं। मुझे नहीं लगता उन्होंने कोई भी काम जो कहा हो, वह किया होगा।”

“वे व्हाइट सुप्रीमेसी में विश्वास करने वाले, संकीर्ण मानसिकता वाले बेहूदे व्यक्ति हैं, जिन्होंने देश को बाँटा है। रंग के नाम पर, जाति के नाम पर और आर्थिक असमानता के तौर पर। वे राजनेता नहीं हैं और इसका फ़ायदा वे देश को पहुँचा सकते थे पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। जिस बड़बोलेपन की डियान फ़ैन हो रही है, उस बड़बोलेपन ने अमेरिकी राष्ट्रपति की साख दुनिया में गिरा दी। हमें कोई भी गम्भीरता से नहीं लेता।” डेब ने कहा।

थोड़ा रुककर वह अपनी बहन की ओर इशारा करते हुए बोली, “जैसा यह कहती है, डेमोक्रेट्स भी वही करते। अब यह तो वक़्त ही बताएगा कि वे क्या करते हैं, पर ट्रम्प इंसान की ज़िन्दगी को राजनीति से परे रखते, वे वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह मानते, और ख़ुद मास्क पहनने की पहल करते तो हम आज बेहतर हालत में रहते।”

जब डेब बोल रही थी तो उनकी बहन जो उनसे बिलकुल सहमत नहीं थी, वह बिलकुल शान्ति सुन रही थी और उसके भाव भी नहीं बदले। इस बात से मुझे बड़ी हैरत हुई।

मुझसे रहा नहीं गया, मैंने कहा, “कमाल की बात है, जब आपमें से एक बोल रही थी तो दूसरी जो उस विचार से बिलकुल अलग सोचती है वो शान्त रही, हमारे यहाँ तो इतना धीरज कोई नहीं रखता। वह वहाँ से या तो चला जाता या फिर बीच में टोक देता।”

“ऐसा क्यों?” डेब ने पूछा।

“पता नहीं, शायद हममें धीरज ख़त्म हो गया है। या हममें इतनी सहिष्णुता नहीं कि हम अपने से अलग विचार को शालीनता से सुन लें।” मैंने कहा।

“यह तो ग़लत है, हम जब दूसरे को सुन नहीं पाते तो पता लगता है कि हम जिन मुद्दों या मूल्यों पर खड़े हैं, उनमें विश्वास नहीं रखते।” डेब ने कहा।

अपनी बात ख़त्म कर उन्होंने हमसे विदा ली। हमने भी दूर रखे अपने सामान को समेटा, वेयर हाउस के मैनेजर को शुक्रिया कहा और आगे की राह पकड़ी।

अरुंधति रॉय की किताब 'अपार ख़ुशी का घराना' से एक अंश

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