ये दुनिया दो-रंगी है

ये दुनिया दो-रंगी है एक तरफ़ से रेशम ओढ़े, एक तरफ़ से नंगी है एक तरफ़ अंधी दौलत की पागल ऐश-परस्ती एक तरफ़ जिस्मों की क़ीमत रोटी...

आख़िरी बार मिलो

आख़िरी बार मिलो ऐसे कि जलते हुए दिल राख हो जाएँ कोई और तक़ाज़ा न करें चाक-ए-वादा न सिले, ज़ख़्म-ए-तमन्ना न खिले साँस हमवार रहे, शमा की लौ...

पास रहो

तुम मेरे पास रहो मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो जिस घड़ी रात चले, आसमानों का लहू पी के सियह रात चले मरहम-ए-मुश्क लिए, नश्तर-ए-अल्मास लिए बैन करती हुई, हँसती...

भूखा बंगाल

पूरब देस में डुग्गी बाजी, फैला सुख का हाल दुख की आगनी कौन बुझाए, सूख गए सब ताल जिन हाथों में मोती रोले, आज वही कंगाल आज...

बंजारा

मैं बंजारा वक़्त के कितने शहरों से गुज़रा हूँ लेकिन वक़्त के इस इक शहर से जाते-जाते मुड़ के देख रहा हूँ सोच रहा हूँ तुमसे मेरा ये नाता...

मुझसे पहले

मुझसे पहले तुझे जिस शख़्स ने चाहा, उसने शायद अब भी तेरा ग़म दिल से लगा रक्खा हो एक बेनाम-सी उम्मीद पे अब भी शायद अपने ख़्वाबों के...

प्यार का जश्न

प्यार का जश्न नयी तरह मनाना होगा ग़म किसी दिल में सही, ग़म को मिटाना होगा। काँपते होंठों पे पैमान-ए-वफ़ा क्या कहना तुझको लायी है कहाँ लग़्ज़िश-ए-पा क्या कहना मेरे घर...

तुम जो सियाने हो, गुन वाले हो

हीरे, मोती, लाल जवाहर, रोले भर-भर थाली अपना कीसा, अपना दामन, अपनी झोली ख़ाली अपना कासा पारा-पारा, अपना गरेबाँ चाक चाक गरेबाँ वाले लोगो तुम कैसे गुन...

ख़ाली मकान

जाले तने हुए हैं घर में कोई नहीं 'कोई नहीं' इक-इक कोना चिल्लाता है दीवारें उठकर कहती हैं 'कोई नहीं' 'कोई नहीं' दरवाज़ा शोर मचाता है कोई नहीं...

फ़क़त चन्द लम्हे

बहुत देर है बस के आने में आओ कहीं पास की लॉन पर बैठ जाएँ चटखता है मेरी भी रग-रग में सूरज बहुत देर से तुम भी चुप-चुप खड़ी...

मेरे पुरखों की पहली दुआ

रात की कोख से सुब्ह की एक नन्ही किरन ने जनम यूँ लिया शब ने नन्ही शफ़क़ की गुलाबी हसीं मुट्ठियाँ खोलकर कुछ लकीरें पढ़ीं और सबा से...

अपनी जंग रहेगी

जब तक चंद लुटेरे इस धरती को घेरे हैं अपनी जंग रहेगी अहल-ए-हवस ने जब तक अपने दाम बिखेरे हैं अपनी जंग रहेगी मग़रिब के चेहरे पर यारो...
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