एक बच्ची
अपनी गुदगुदी हथेली
देखती है
और धरती पर मारती है।
लार और हँसी से सना
उसका चेहरा अभी
इतना मुलायम है
कि पूरी धरती
अपने थूक के फुग्गे में उतारी है।

अभी सारे मकान
काग़ज़ की तरह हल्के
हवा में हिलते हैं
आकाश अभी विरल है दूर
उसके बालों को
धीरे-धीरे हिलाती हवा
फूलों का तमाशा है
वे हँसते हुए इशारा करते हैं:
दूर-दूरान्तरों से
उत्सुक क़ाफ़िले धूप में
चमकते हुए आएँगे।

सुन्दरता
कितना बड़ा कारण है
हम बचेंगे अगर!

जन्म चाहिए
हर चीज़ को एक और
जन्म चाहिए।

नवीन सागर
हिन्दी कवि व लेखक! कविता संग्रह- 'नींद से लम्बी रात', 'जब ख़ुद नहीं था'!