‘Chamgaadar’, a poem by Yogesh Dhyani
अभी-अभी विदा ली है
पक्षियों ने समूह में आकाश से
और उड़कर चले गये हैं कहीं दूर घोसलों में
दृश्य में कालिमा घुलने लगी है
छोटे-छोटे चमगादड़ हमारी देह के
बहुत नज़दीक से निकल रहे हैं अब
इस समय जो भी दुपट्टे
अपने घरों से बाहर हैं
उनमें ढँकी हुई देह
पहुँच जाना चाहती हैं घर
सारे चमगादड़ों द्वारा शहर की सारी जगह
घेर लिये जाने से पहले
क्योंकि रात को घर की तरह
शहर की चौकियों से भी आती है
खर्राटों की आवाज़
जिनके ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है-
“हम हर वक़्त आपकी सुरक्षा में तैनात हैं।”
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