मरते वक़्त
उसकी दोनों आँखें खुली थीं
मछलियों की भाँति
आंकड़ों ने ज़ब्त कर लिए हैं
उनके नाम
उसकी आँखों के नीचे आये
स्याह घेरे में समूची दुनिया सवालों के
नीचे साँसे भर रही है
ग़रीब होना इस दुनिया की किताब का
सबसे दुर्बोध अभिशाप है
उनकी मौतों के कारणों को
योजनाओं की फाइलों में
सहेजा नहीं जाता
उनकी आँखों की
सफ़ेद चारदीवारी पर
उभरे शब्दों में याचनाएँ हैं
उन तमाम बच्चों के लिए
जो अभी तक जीवित हैं
उनके ठण्डे पड़े जिस्म से
झाँक रही हैं हमारी मरी हुई
सारी सम्वेदनाएँ
ग़रीबी की चौखट पर
हुई मौतों पर सांत्वना देने हेतु
हमारे पास मोमबत्तियों के
अलावा कुछ नहीं है
मेरे प्यारे बच्चों
और बचे हैं कुछ पन्ने जिन पर
लिखी जायें तुम्हारी मौत
के दुःख में कुछ कवितायें…