‘Chand’, a poem by Amar Dalpura
शाम के झुरमुट में
पहाड़ की पीठ को चूमता हुआ सूरज
चले जाता है धरती की नींद में
वो आती है
हरे-भरे खेतों से
जैसे पीली-पीली लुगड़ी से
निकला है चाँद
मंदरा-मंदरा काज़ल
साँझ को बेचैन करता है
शब्दहीन मिलन के स्वर में
चाँद की पीठ पर
झरते हैं बबूल के पीले-पीले फूल
वह दुप्पटे की छींट में
छुपा लेती है प्रेम को!
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