Chand Ka Kurta, a poem by
Ramdhari Singh Dinkar
हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला
सन-सन चलती हवा रात-भर जाड़े से मरता हूँ
ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।
आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का
न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का
बच्चे की सुन बात, कहा माता ने ‘अरे सलोने’
कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने।
जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ
एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ
कभी एक अंगुल-भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा
बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।
घटता-बढ़ता रोज़, किसी दिन ऐसा भी करता है
नहीं किसी की भी आँखों को दिखलायी पड़ता है
अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज़ लिवायें
सी दे एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आये!
अशोक चक्रधर की कविता 'मेमने ने देखे जब गैया के आँसू'