चन्दा की छाँव पड़ी सागर के मन में,
शायद मुख देखा है तुमने दर्पण में।

ओठों के ओर-छोर टेसू का पहरा,
ऊषा के चेहरे का रंग हुआ गहरा।

चुम्बन से डोल रहे माधव मधुबन में,
शायद मुख चूमा है तुमने बचपन में।

अंगड़ाई लील गई आँखों के तारे,
अंगिया के बन्ध खुले बगिया के द्वारे।

मौसम बौराया है मन में, उपवन में,
शायद मद घोला है तुमने चितवन में।

प्राणों के पोखर में सपनों के साये,
सपनों में अपने भी हो गए पराये।

पीड़ा की फाँस उगी साँसों के वन में,
शायद छल बोया है तुमने धड़कन में।

किशोर काबरा की कविता 'तन के तट पर'

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किशोर काबरा
डॉ॰ किशोर काबरा (जन्म : २६ दिसम्बर १९३४) हिन्दी कवि हैं। साठोत्तरी हिन्दी-कविता के शीर्षस्थ हस्ताक्षरों में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। काबरा जी मूलत: कवि हैं, साथ ही निबन्धकार, आलोचक, कहानीकार, शब्द-चित्रकार, अनुवादक एवं संपादक भी हैं।