तुम जो बनती मौसम चाँदनी रात में,
ज्वार उठते हैं मुझमें चाँदनी रात में।

साँस के बहाने कलियाँ भरती हैं गंध,
जब तुम गुज़रती चाँदनी रात में।

दिल में लौ, धड़कन में लय, तेरा बोलना,
हर शब्द महाकाव्य, चाँदनी रात में।

मेरी दोस्त ये साथ, चिर प्यार निर्मल,
ज्यों बहती नदी चाँदनी रात में।

क्या करेंगे उम्र चार दिन की ले?
एक उम्र ही बहुत चाँदनी रात में।

यह भी पढ़ें:

रामकृष्ण दीक्षित ‘विश्व’ की कविता ‘चाँदनी रात में नौका विहार’
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता ‘चलो घूम आएँ’
मख़दूम मुहिउद्दीन की नज़्म ‘आज की रात न जा’
वंदना कपिल की कविता ‘दरवाज़े पर रात खड़ी है’

धर्मपाल महेंद्र जैन
टोरंटो (कनाडा) जन्म : 1952, रानापुर, जिला – झाबुआ, म. प्र. शिक्षा : भौतिकी; हिन्दी एवं अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर प्रकाशन : छः सौ से अधिक कविताएँ व हास्य-व्यंग्य प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, आकाशवाणी से प्रसारित। 'कुछ सम कुछ विषम', और ‘इस समय तक’ कविता संकलन व 'इमोजी की मौज में', "दिमाग़ वालो सावधान" और “सर क्यों दाँत फाड़ रहा है?” व्यंग्य संकलन प्रकाशित। संपादन : स्वदेश दैनिक (इन्दौर) में 1972 में संपादन मंडल में, 1976-1979 में शाश्वत धर्म मासिक में प्रबंध संपादक। संप्रति : सेवानिवृत्त, स्वतंत्र लेखन। दीपट्रांस में कार्यपालक। पूर्व में बैंक ऑफ इंडिया, न्यू यॉर्क में सहायक उपाध्यक्ष एवं उनकी कईं भारतीय शाखाओं में प्रबंधक। स्वयंसेवा : जैना, जैन सोसायटी ऑफ टोरंटो व कैनेडा की मिनिस्ट्री ऑफ करेक्शंस के तहत आय एफ सी में पूर्व निदेशक। न्यू यॉर्क में सेवाकाल के दौरान भारतीय कौंसलावास की राजभाषा समिति और परमानेंट मिशन ऑफ इंडिया की सांस्कृतिक समिति में सदस्य। तत्कालीन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स में परीक्षक।