क्रूरसिंह को बस एक यही फिक्र लगी हुई थी कि जिस तरह बने वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह को मार डालना ही नहीं चाहिए, बल्कि नौगढ़ का राज्य ही गारत कर देना चाहिए। नाजिम को साथ लिए चुनारगढ़ पहुँचा और शिवदत्त के दरबार में हाजिर होकर नजर दिया। महाराज इसे बखूबी जानते थे इसलिए नजर लेकर हाल पूछा।

क्रूरसिंह ने कहा – “महाराज, जो कुछ हाल है मैं एकांत में कहूँगा।”

दरबार बर्खास्त हुआ, शाम को तखलिए (एकांत) में महाराज ने क्रूर को बुलाया और हाल पूछा। उसने जितनी शिकायत महाराज जयसिंह की करते बनी, की, और यह भी कहा कि – “लश्कर का इंतजाम आजकल बहुत खराब है, मुसलमान सब हमारे मेल में हैं, अगर आप चाहें तो इस समय विजयगढ़ को फतह कर लेना कोई मुश्किल बात नहीं है। चंद्रकांता महाराज जयसिंह की लड़की भी जो खूबसूरती में अपना कोई सानी नहीं रखती, आप ही के हाथ लगेगी।”

ऐसी-ऐसी बहुत-सी बातें कह महाराज शिवदत्त को उसने पूरे तौर से भड़काया। आखिर महाराज ने कहा – “हमको लड़ने की अभी कोई जरूरत नहीं, पहले हम अपने ऐयारों से काम लेंगे फिर जैसा होगा देखा जाएगा। मेरे यहाँ छः ऐयार हैं जिनमें से चार ऐयारों के साथ पंडित जगन्नाथ ज्योतिषी को तुम्हारे साथ कर देते हैं। इन सभी को लेकर तुम जाओ, देखो तो ये लोग क्या करते हैं। पीछे जब मौका होगा हम भी लश्कर लेकर पहुँच जाएँगे।”

उन ऐयारों के नाम थे – पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, चुन्नीलाल, रामनारायण, भगवानदत्त और घसीटासिंह। महाराज ने पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, और भगवान दत्त इन चारों को जो मुनासिब था कहा और इन लोगों को क्रूरसिंह के हवाले किया।

अभी ये लोग बैठे ही थे कि एक चोबदार ने आकर अर्ज किया – “महाराज ड्योढ़ी पर कई आदमी फरियादी खड़े हैं, कहते हैं हम लोग क्रूरसिंह के रिश्तेदार हैं, इनके चुनारगढ़ जाने का हाल सुनकर महाराज जयसिंह ने घर-बार लूट लिया और हम लोगों को निकाल दिया। उन लोगों के लिए क्या हुक्म है?”

यह सुनकर क्रूरसिंह के होश उड़ गए। महाराज शिवदत्त ने सभी को अंदर बुलाया और हाल पूछा। जो कुछ हुआ था उन्होंने बयान किया। इसके बाद क्रूरसिंह और नाजिम की तरफ देखकर कहा – “अहमद भी तो आपके पास आया है।”

नाजिम ने पूछा, “अहमद। वह कहाँ है? यहाँ तो नहीं आया।”

सभी ने कहा – “वाह! वहाँ तो घर पर गया था और यह कहकर चला गया कि मैं भी चुनारगढ़ जाता हूँ।”

नाजिम ने कहा – “बस मैं समझ गया, वह जरूर तेजसिंह होगा इसमें कोई शक नहीं। उसी ने महाराज को भी खबर पहुँचाई होगी, यह सब फसाद उसी का है।”

यह सुन क्रूरसिंह रोने लगा।

महाराज शिवदत्त ने कहा – “जो होना था सो हो गया, सोच मत करो। देखो इसका बदला जयसिंह से मैं लेता हूँ। तुम इसी शहर में रहो, हमाम के सामने वाला मकान तुम्हें दिया जाता है, उसी में अपने कुटुंब को रखो, रुपए की मदद सरकार से हो जाएगी।”

क्रूरसिंह ने महाराज के हुक्म के मुताबिक उसी मकान में डेरा जमाया।

कई दिन बाद दरबार में हाजिर होकर क्रूरसिंह ने महाराज से विजयगढ़ जाने के लिए अर्ज किया। सब इंतजाम हो ही चुका था, महाराज ने मय चारों ऐयार और पंडित जगन्नाथ ज्योतिषी के साथ क्रूरसिंह और नाजिम को विदा किया। ऐयार लोग भी अपने-अपने सामान से लैस हो गए। कई तरह के कपड़े लिए, बटुआ ऐयारी का अपने-अपने कंधे से लटका लिया, खंजर बगल में लिया, ज्योतिषी जी ने भी पोथी-पत्रा आदि और कुछ ऐयारी का सामान ले लिया क्योंकि वह थोड़ी-बहुत ऐयारी भी जानते थे। अब यह शैतान का झुंड विजयगढ़ की तरफ रवाना हुआ। इन लोगों का इरादा नौगढ़ जाने का भी था। देखिए कहाँ जाते हैं और क्या करते हैं!

देवकी नन्दन खत्री
बाबू देवकीनन्दन खत्री (29 जून 1861 - 1 अगस्त 1913) हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक थे। उन्होने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोदना, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की।