चट्टान को तोड़ो
वह सुन्दर हो जाएगी
उसे तोड़ो
वह और, और सुन्दर होती जाएगी

अब उसे उठा लो
रख लो कन्धे पर
ले जाओ शहर या क़स्बे में
डाल दो किसी चौराहे पर
तेज़ धूप में तपने दो उसे

जब बच्चे हो जाएँगे
उसमें अपने चेहरे तलाश करेंगे

अब उसे फिर से उठाओ
अबकी ले जाओ उसे किसी नदी या समुद्र के किनारे
छोड़ दो पानी में
उस पर लिख दो वह नाम
जो तुम्हारे अन्दर गूँज रहा है
वह नाव बन जाएगी

अब उसे फिर से तोड़ो
फिर से उसी जगह खड़ा करो चट्टान को
उसे फिर से उठाओ
डाल दो किसी नींव में
किसी टूटी हुई पुलिया के नीचे
टिका दो उसे
उसे रख दो किसी थके हुए आदमी के सिरहाने

अब लौट आओ
तुमने अपना काम पूरा कर लिया है
अगर कन्धे दुख रहे हों
कोई बात नहीं
यक़ीन करो कन्धों पर
कन्धों के दुखने पर यक़ीन करो

यकीन करो
और खोज लाओ
कोई नयी चट्टान!

केदारनाथ सिंह की कविता 'यह पृथ्वी रहेगी'

Book by Kedarnath Singh:

केदारनाथ सिंह
केदारनाथ सिंह (७ जुलाई १९३४ – १९ मार्च २०१८), हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि व साहित्यकार थे। वे अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि रहे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा उन्हें वर्ष २०१३ का ४९वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। वे यह पुरस्कार पाने वाले हिन्दी के १०वें लेखक थे।