‘Chhal’, a poem by Niki Pushkar

तुम पर जब दर्शायी जा रही थी,
झूठी विवशता
तुम समझ रहे थे प्रवंचना,
और फिर भी मौन थे
वस्तुतः तुम छल रहे थे स्वयँ को
तुम्हारी स्वीकार्यता प्रणय तक थी
परिणय पर नहीं…
ख़ूब जान चुके थे तुम
मन की स्वप्निल पगडण्डियों का प्रीतम
यथार्थ जगत का साथी नहीं बन सकता…

जब तुम सुना रहे थे,
बीती प्रणय-कथा
दे रहे थे अपनी निष्ठा का प्रमाण साथी को
वस्तुतः तुम छल रहे थे
स्वयँ के साथ साथी को भी
वर्षों का प्रेम-सम्बन्ध
कुछ पंक्तियों में वर्णित कर
रिश्ते की गहनता को तुम साफ़ छिपा गये
छिपा गये कि,
तुम अब भी रात-दिन हो
उसी असर में
छिपा गये कि
वह तुम्हारे ज़िहन से
कभी निकला ही नहीं
छिपा गये कि
तुम्हारी राहों, बाहों, आहों
और ख़्वाबों में
आज भी
उसी का अक्स रहता है!

निकी पुष्कर
Pushkarniki [email protected] काव्य-संग्रह -पुष्कर विशे'श'