लोग जहाँ
खेतों में खप जाते हैं
शहर से चली हुई बिजली
जिनके यहाँ तक आते-आते बीच में ही कहीं किसी खम्भे पर दम तोड़ देती है
ज़रूरत का सामान
जिनके यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते दो रुपया और महँगा हो जाता है
स्कूल का हेडमास्टर
जहाँ स्कूल के कमरे में भर देता है
अपने मवेशियों के लिए भूसा
वहाँ के लोग
किसी डॉक्टर को नहीं जानते
रात-बिरात
ज़रूरत लगने पर वे बुला लाते हैं—
कम्पाउण्डर
साइकिल के कैरियर में चमड़े का पुराना बैग दबाए
मरीज़ को देखने आने वाला कम्पाउण्डर
डिग्री की नहीं
अनुभव की बातें करता है
वह बीमारी को भले कम बूझता हो
मरीज़ को ठीक-ठीक समझता है
इंजेक्शन देने के बाद
वह पर्ची पर लिखता है कुछ दवाइयाँ
और तसल्ली के साथ बांध देता है कुछ हिदायतें
जो काम एक कम्पाउण्डर
सालों से करता आ रहा है
वह काम हमारा लोकतंत्र सालों में नहीं कर पाया
बतौर नागरिक
मुझे इस बात का बेहद अफ़सोस है।
गौरव भारती की कविता 'हम मारे गए'