चिराग ढूँढता है
रात में केवल वही
दिन गुजरा है जिसका
सकल उजालों में।
वरना स्याह रंगत है
जिसकी धूप की ही
भला उसे फर्क क्या
दिन है कि रात है।
चिराग ढूँढता है
रात में केवल वही
दिन गुजरा है जिसका
सकल उजालों में।
वरना स्याह रंगत है
जिसकी धूप की ही
भला उसे फर्क क्या
दिन है कि रात है।