कविता: ‘मृत्यु इतना घमण्ड मत करो तुम’ (‘Death, be not proud’)
कवि: जॉन डन (John Donne)

भावानुवाद: दिव्या श्री

मृत्यु इतना घमण्ड मत करो तुम
हालाँकि कुछ लोगों ने तुम्हें शक्तिशाली और भयानक कहा है
लेकिन तुम ऐसी हो नहीं।
जिनके लिए तुम सोचती हो कि तुमने उन्हें मार दिया
सच तो यह है कि वह कभी मरे ही नहीं
और न ही तुम मुझे कभी मार सकती हो, दुर्बल मौत!

तुम तो नींद हो, जो चाहिए आराम के लिए
जैसा कि तुम्हारी परछाई बताती है
फिर तो बहुत ख़ुशी होगी तुमसे मिलकर
बहुत अधिक, क्योंकि तुम गहरी नींद हो
और जल्दी ही हमारे अच्छे लोगों को जो तुम ले जाती हो न
तुम्हें नहीं पता, तुम उनकी हड्डियों को कितना सुकून देती हो
और आत्मा को आज़ाद करती हो।

तुम तो ख़ुद ग़ुलाम हो तक़दीर, वक़्त, राजाओं और हताश हो चुके मनुष्यों के
और तुम बसती भी हो तो ज़हर, जंग और बीमारी के साथ
फिर तुम्हें किस चीज़ का इतना घमण्ड
क्यों इतना प्रफुल्लित हो रही?
तुम्हारे झटके से बेहतर है अफ़ीम और जादू की नींद।

मृत्यु, तुम तो एक छोटी-सी नींद हो
जब तुम हमें छूकर जाओगी
तब हम हमेशा के लिए जाग जाएँगे
और तुम हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाओगी
तब ख़ुद मर जाओगी तुम।

अहमद मिक़दाद की कविता 'बीस बुलेट'

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दिव्या श्री
मैं दिव्या श्री, कला संकाय में स्नातक कर रही हूं। कविताएं लिखती हूं। अंग्रेजी साहित्य मेरा विषय है तो अनुवाद में भी रुचि रखती हूं। बेगूसराय बिहार में रहती हूं। प्रकाशन: हंस, वागर्थ, ककसाड़, कविकुम्भ, उदिता, जानकीपुल, शब्दांकन, इंद्रधनुष , पोषम पा, कारवां, साहित्यिक, तीखर, हिन्दीनामा, अविसद, ईमेल आईडी: [email protected]