‘Dena’, a poem by Naveen Sagar
जिसने मेरा घर जलाया
उसे इतना बड़ा घर
देना कि बाहर निकलने को चले
पर निकल न पाए
जिसने मुझे मारा
उसे सब देना
मृत्यु न देना,
जिसने मेरी रोटी छीनी
उसे रोटियों के समुद्र में फेंकना
और तूफ़ान उठाना
जिनसे मैं नहीं मिला
उनसे मिलवाना
मुझे इतनी दूर छोड़ आना
कि बराबर संसार में आता रहूँ
अगली बार
इतना प्रेम देना
कि कह सकूँ : प्रेम करता हूँ
और वह मेरे सामने हो।
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