कविता संग्रह ‘लहर भर समय’ से
हरियाली के बीच बिताकर उम्र
दिखी जब पहली बार अचानक
सुन्दरता पत्ती की
पतझर का पहला दिन था वह
वह पतझर की
पहली पत्ती।
जब अपने होने से बाहर
होकर देखा
आती-जाती साँसों का
कौतुक जादूई
वह था अन्तिम क्षण प्राणों का।
प्यासे बहते रहे उम्र-भर
फिर जाना ये पानी ही तो
प्यास बुझाता है
सूखी थी नदी वहीं पर।
जिस छवि की तलाश में भटके सदा
हर क़दम आसपास थी,
उसको जब पहचाना तब तक
बीत चुका था वक़्त प्यार का।
वेणु गोपाल की कविता 'प्यार का वक़्त'