कोई नहीं देता साथ,
सभी लोग युद्ध और देश-प्रेम की बातें करते हैं।
बड़े-बड़े नारे लगाते हैं।
मुझसे बोला भी नहीं जाता।
जब लोग घंटों राष्ट्र के नाम पर आँसू बहाते हैं
मेरी आँख में एक बूँद पानी नहीं आता।
अक्सर ऐसा होता कि मातृभूमि पर मरने के लिए
भाषणों से भरी सभाओं
और प्रदर्शन की भारी भीड़ों में
लगता है कि मैं ही हूँ एक मूर्ख…
कायर-गद्दार!
मुझे ही सुनायी नहीं पड़ता है
देश-प्रेम,
जो संकट आते ही
समाचार-पत्रों में डोंडी पिटवाकर
कहलाया जाता है—
बार-बार।
दुष्यन्त कुमार की कविता 'काग़ज़ की डोंगियाँ'