कोई नहीं देता साथ,
सभी लोग युद्ध और देश-प्रेम की बातें करते हैं।
बड़े-बड़े नारे लगाते हैं।
मुझसे बोला भी नहीं जाता।
जब लोग घंटों राष्ट्र के नाम पर आँसू बहाते हैं
मेरी आँख में एक बूँद पानी नहीं आता।

अक्सर ऐसा होता कि मातृभूमि पर मरने के लिए
भाषणों से भरी सभाओं
और प्रदर्शन की भारी भीड़ों में
लगता है कि मैं ही हूँ एक मूर्ख…
कायर-गद्दार!

मुझे ही सुनायी नहीं पड़ता है
देश-प्रेम,
जो संकट आते ही
समाचार-पत्रों में डोंडी पिटवाकर
कहलाया जाता है—
बार-बार।

दुष्यन्त कुमार की कविता 'काग़ज़ की डोंगियाँ'

Book by Dushyant Kumar:

दुष्यन्त कुमार
दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिन्दी कवि और ग़ज़लकार थे। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की।