कभी धीमी फुहारों में घुलकर
हल्के-हल्के बरसता है तुम्हारा प्रेम
खुले बालों पर टाँक देता है ढेरों मोती
गालों पर ढुलकते हुए छोड़ जाता है
देर तक टिकने वाली स्नेहभरी नमी
मन को छू लेती है बूँदों की मृदुता
कम हो जाता है हृदय का कसैलापन
हरियाने लगते हैं भावनाओं के सूखे डण्ठल
तभी अचानक गरज उठते हैं बादल
साथ ही हुँकार उठता है तुम्हारा पुरुषत्व
बिजली की चमक उतर आती है आँखों में
तेज़ हो उठती है बौछारों की मार
तीर-सी चुभने लगती हैं बूँदें
चेहरे की नमी को अपने संग बहाकर
छोड़ जाती हैं चेहरे पर
देर तक टिकनेवाला नमक
तुम्हारी आवाज़ का तेज़ शोर
तूफ़ानी बारिश-सा टकराता है मुझसे
बालों में सजी लड़ियाँ बिखर जाती हैं तिनकों-सी
मोतियाँ बालों से पलकों में उतर आती हैं
दहक उठते हैं तुम्हारी आँखों में उतरे अंगारे
लाल अंगारे स्याह कर देते हैं मेरा रक्तिम हृदय
भावनाओं पर गिरे शब्दों के ओले
ठूँठ कर जाते हैं हरियाते गाछों को
देर तक सहेजती हूँ बिखरी कोमलता
और फिर पूछ लेती हूँ धीरे-से
हल्की बारिशें क्यों बदल जाती हैं
आँधी तूफ़ान और गर्जनाओं से भरी बारिश में?
बूँदों के चमकते मोती क्यों गड़ने लगते हैं
तीख़ी नोक वाले शरों की तरह
प्रश्न सुन ठठाकर हँस पड़ता है
तुम्हारी आँखों से झाँकता स्याह बादल
वक्र हँसी की लकीर कानों तक खींच
सयाने की तरह समझाता है
आवारा होते हैं बादल!
नहीं टिकते किसी एक जगह ज़्यादा देर
रंग बदलने में माहिर चमकीले बादल
कब धूसर हो कर देंगे धुँधली तुम्हारी दृष्टि
काला लबादा पहन कब ढक लेंगे तुम्हारी ख़ुशी
और कब गरजते हुए गिरा देंगे बिजलियाँ
तुम नहीं जान पाओगी
क्योंकि हृदयहीन नहीं है धरती
धरती ने सोखना सीखा है दुःखों की बाढ़ को
बादलों की असमय आमद से
जल-जल होती धरती
फ़सलों, गाँवों और जीवन को खोकर भी
भूल जाती है बादलों की ज़्यादती
बंजर धरती थोड़ी नमी से फिर हरियाती है
मैं फिर अपने चेहरे पर चढ़ा लूँगा
मुस्कान और अपनेपन का नक़ाब
तुम भी मुस्कुरा दोगी भूलकर अपनी पीड़ा
धरती से ज़रा भी अलग नहीं हो तुम!