कविताओं को किसी
आडम्बर की आवश्यकता नहीं
आकाश बादलों से प्रेम के लिए
धरा बारिश के उन्माद के लिए
निशा तारिकाओं से अनुरक्ति के लिए
विटप पखेरुओं से हेत के लिए
भोर मरीचियों की प्रतीक्षा के लिए
कोई प्रपंच नहीं करते
प्रकृति अपने लिए कोई छल नहीं करती
ढोंग मात्र एक मानवीय लक्षण है
शब्दों का अप्राकृतिक और परिष्कृत होना
ढोंग नहीं तो और क्या है?