आज सुबह सुबह ढूँढ रही थी,
बिस्तर पे,
जो कल तुम छोड़ गए हो..
तुम्हारी गर्म साँसें,
तकिये पे गिरे थे कुछ बाल मेरे,
तुम्हारी उंगलियों में जो फंसे थे कल रात,
देखो तो, कहीं तुम्हारे दाहिने कंधे पर,
मेरी लटों की कोई कहानी तो नहीं है ना?
बिस्तर की करवटें,
मेरे चेहरे की ताज़गी,
लंबी सी रात के बाद की ताज़ी सुबह,
हवाओं में बहता कुछ रूमानी सा मौसम,
और अभी अभी बनाई हुई ये गर्म कॉफ़ी,
हम सब ढूँढ रहे हैं,
कहाँ हो तुम?
क्या कल रात कोई ख़्वाब थे तुम,
या कोई हकीकत?
पता है, तुम्हारी धड़कनें क्या कहती हैं?
जब मैं उनके नज़दीक होती हूँ?
कल मैंने अपना ही नाम सुना,
तुम्हारी खुली बाहों मे कुछ यूँ सिमटती हूँ मैं,
जैसे चांदनी रात में कोई बादल चाँद को लपेट लेता है!
मेरी बन्द पलकों कों जैसे तुम अपनी खुली आँखों से,
सिर्फ देखते ही नहीं हो,
थोड़ा सा अपनी पलकों को मेरी आँखों पे रखते हो,
और तभी तुम्हारे होठ भी…
मैं कुछ बोल नहीं पाती,
बस महसूस करती हूँ,
अभी भी तुम्हारी गर्म साँसें,
इस कॉफ़ी के जैसे मेरे अन्दर उतर रही है!
ढूँढ रही हूँ…
वो नर्म बाहें, वो तना सा बदन,
वो गर्म साँसें और हमारे प्यार का मौसम…