‘Dhoop Mein Pehli Barish’, a poem by Namrata
आज धूप में पहली बारिश,
कतरनों पर कुछ बातें कढ़ी थीं
तुमने पढ़ा ही नहीं, सब गीली हो गईं।
धूप से कोई ख़ता हो गई
सूरज ने तासीर कम कर दी,
मौसम को आग की पनाह चाहिए।
माज़ी की बूँद दरिया हुई
नींद से जागी उमर को पकड़े
बाढ़ बनकर किताबों में रिस रही है।
मायूसियों को तालाबंदी
निगाहों में स्याह चमक धरकर
उदासियाँ तो लम्बी हड़ताल पर हैं।
चाहे दामन हो सुनसान
क़ैदवाले की आज़ादी के वास्ते
क़ैदख़ाने की बेचारगी पर कौन रोए।