(सेना की ट्रेनिंग में माँ की लिखी चिट्ठियों से कुछ अंश)
आरम्भ
मैं कुशल से हूँ तुम्हारा कुशल क़ायम हेतु सदा ईश्वर से मनाया करती हूँ । फ़ोन ख (भाई) के पास किया था वहीं मालूम हुआ कि तुम्हारा ट्रेनिंग 23 से शुरु हो गया । हमलोगों के बारे में कुछ मत सोचना । अपना ट्रेनिंग ठीक से करना । शरीर पर ध्यान देना ज़रूर । (31 दिसम्बर)
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होली में कोई नहीं था । धनबाद जाकर ख ने फ़ोन किया था वहीं से समाचार मालूम हुआ कि तुम जंगल ट्रेनिंग के लिए गए हो । ईश्वर हीं तुम्हारे रक्षा करें ।
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माँ से बात नहीं छिपाना चाहिए । खान-पान तथा रहने का, अपना स्वास्थ्य का, क्या करते हो सब डेली रूटीन लिखना ।
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रफ़ीगंज से दुलरी फुआ आई हैं । अभी फुआ रहेंगी ठंडा भर ऐसा लगता है – इस समय आने–जाने वालों का ताँता लगा रहता है । मिज़ाज परेशान हो जाता है ।
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तुम कुछ नहीं सोचना । अपना काम तथा शरीर पर ध्यान देना । लड़कों के साथ मिलजुलकर रहना । समय पर खाना खा लेना । पत्र लिखना बंद कर रही हूँ अभी ढाई बजे हैं (तुम्हारे) पापा बाहर जा रहे हैं ।
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इधर पानी बहुत पड़ रहा है नहीं तो (बूथ जाकर) फ़ोन करते । इसी के चलते पापा (साइकिल से) कलेर नहीं गये । गली सब कीचड़ हो गया है ।
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कोई बात अफ़सर से पूछ लेना । लजाना नहीं ।
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तुम हर तरह से प्रसन्न रहना । ईश्वर तुम्हारे रक्षा करेंगे । कोई काम सावधानी से करना, उचित-अनुचित समझ बुझ के ।
मध्यांतर
इधर हम पर्व तीज-कर्मा में व्यस्त रहकर पत्र नहीं लिख सकी । कभी–कभी मिज़ाज गड़बड़ा जाता है अकेले सब करना पड़ता है । छ को लड़का हुआ है । ज जनरेटर चला रहा है वह अभी शादी नहीं करेगा जैसा बोल रहा था । भैया, भाभी को लेकर चले गए ।
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तुम्हारा 7 सितम्बर को भेजा ख़त 20 तारीख़ को मिला । दशहरा में अकेले रहने के कारण मन बहुत उदास रहा । ग, घ और च (दोस्त) आए थे । दशहरा के दिन क्या खाया था ?
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इधर तुमको राइफ़ल वग़ैरह भी चलाना है । ये सुन कर हमारा मन बहुत दुःख हुआ । बाबू कोई काम सावधानी से करना । इतना भारी जूता तथा पहाड़ी पर जाना ये कितना परिश्रम है, हम सुनते हैं तुम्हारा परिश्रम तो आँख से आँसू गिरने लगता है लेकिन परिस्थिति अनुसार धैर्य रखना पड़ता है क्यूँकि ईश्वर कृपा से दुःख के बाद हीं सुख होता है ।
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व्रत त्योहार से पत्र लिखने में देर हो गया इधर एक माह से अंतर्देशी पत्र नहीं मिल रहा था । अब मिल रहा है । (ट्रेनिंग में) गर्म कपड़ा मिला की नहीं सो लिखना ? तुम अपना स्वेटर यहीं छोड़ गया है ।
प्रतीक्षा
आज जिउतिया पर्व है । बहुत हमको बुझा रहा है । गुलचुई पुआ बनाई हूँ ।
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तुमको देखने का मन करता है । बहुत दिन हो गया । अपना शरीर के बारे में लिखना । क्या दुबरा (दुबला) गया है ? कभी कभी रूलाई आ जाता है ।
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इधर तुम्हारा लेटर नहीं आ रहा है । पत्र नहीं आने से मन चिंतित रहता है ।
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तुम कब आ रहे हो ? किस ट्रेन से कहाँ उतरोगे ? ये सब पत्र द्वारा सूचित करना । यहाँ(घर में) आम, बेल फरा है । आचार वग़ैरह भी लगाए हैं । वहाँ पका आम खाते हो ? ख़ूब पका आम खाना । (दूसरे साल की मई)