खोल दो मुट्ठी
अब तितली को उड़ जाने दो,
भूल न जाएँ उड़ना
पंख परिंदों के खुल जाने दो।
मत स्नेह बंधन में घेरो मुझको
आँखें मीचे उग जाने दो।
उकेरने दो सम्भावनाएँ नयी
और गढ़ने दो कल्पनाएँ कई।
मत रोको बाँधों में नदी
उफनती सरिता को बह जाने दो।
सुलझने दो उलझनों की कड़ी,
खोल दो किवाड़ अब,
रात्रि बेला को न रोको
अब तो रवि को आने दो।
किरणें भर-भर कर
रख दी हैं जमाकर,
हथेलियों के पोर जगमगाने दो।
तोड़ दो सोने की सलाखें,
मन के पंछी को उड़ जाने दो।
दे दो नयी छत,
नयी उम्मीद, नयी आशा
और नये सपने,
आँखों पर पड़े पर्दे उठ जाने दो।
घुमड़ रहा जो घन
काली घटाओं में अकुलाता,
आख़िर बरस उसे जाने दो।
मन के कपाट को खोलकर
झाँको हृदय के तिमिर में,
एक दिया रख दो
वहाँ भी उजाला हो जाने दो।

अनुपमा मिश्रा
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