‘Ek-Dooje Ke Hisse Ka Pyar’, a poem by Vijay Rahi

एक समय था
जब दोनों का सब साझा था
सुख, दुःख,
हँसना, रोना,
नींद, सपने
या और कोई भी
ऐसी-वैसी बात।

कुछ चीज़ें ऐसी भी-
जो बेमतलबी लग सकती हैं
जैसे साबुन, स्प्रे, तौलिया
कभी-कभी शॉल भी।

शरारतें, शिकायतें,
ये तो साझा होनी ही थीं।

कार, मोबाईल,
फ़ेसबुक, व्हाट्सएप
और कुछ चीज़ें
छोटी-छोटी भी –
यहाँ तक कि रोटी भी।

अब नहीं रहा
तो कुछ नहीं रहा
सिवाय उस पाँच वर्षीय बच्चे के
जिसे करते हैं दोनों
एक-दूजे के हिस्से का भी प्यार।

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विजय राही
विजय राही युवा कवि हैं। हिन्दी के साथ उर्दू और राजस्थानी में समानांतर लेखन। हंस, मधुमती, पाखी, तद्भव, वर्तमान साहित्य, कृति बहुमत, सदानीरा, अलख, कथेसर, विश्व गाथा, रेख़्ता, हिन्दवी, कविता कोश, पहली बार, इन्द्रधनुष, अथाई, उर्दू प्वाइंट, पोषम पा,दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज, राष्ट्रदूत आदि पत्र-पत्रिकाओं, ब्लॉग और वेबसाइट्स पर कविताएँ - ग़ज़लें प्रकाशित। सम्मान- दैनिक भास्कर युवा प्रतिभा खोज प्रोत्साहन पुरस्कार-2018, क़लमकार द्वितीय राष्ट्रीय पुरस्कार (कविता श्रेणी)-2019 संप्रति - राजकीय महाविद्यालय, कानोता, जयपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत