‘Ek Kabootar Chitthi Lekar Pehli Pehli Baar Uda’, a ghazal by Dushyant Kumar
एक कबूतर चिठ्ठी लेकर पहली-पहली बार उड़ा
मौसम एक गुलेल लिये था, पट से नीचे आन गिरा
बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे काँटे, तेज़ हवा
हमने घर बैठे-बैठे ही सारा मंज़र देख लिया
चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की
सोचो कितना बोझ उठाकर मैं इन राहों से गुज़रा
सहने को हो गया इकठ्ठा इतना सारा दुःख मन में
कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुझको भूल गया
धीरे-धीरे भीग रही हैं सारी ईंटें पानी में
इनको क्या मालूम कि आगे चलकर इनका क्या होगा
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