‘Ek Kabootar Chitthi Lekar Pehli Pehli Baar Uda’, a ghazal by Dushyant Kumar

एक कबूतर चिठ्ठी लेकर पहली-पहली बार उड़ा
मौसम एक गुलेल लिये था, पट से नीचे आन गिरा

बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे काँटे, तेज़ हवा
हमने घर बैठे-बैठे ही सारा मंज़र देख लिया

चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की
सोचो कितना बोझ उठाकर मैं इन राहों से गुज़रा

सहने को हो गया इकठ्ठा इतना सारा दुःख मन में
कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुझको भूल गया

धीरे-धीरे भीग रही हैं सारी ईंटें पानी में
इनको क्या मालूम कि आगे चलकर इनका क्या होगा

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Book by Dushyant Kumar:

दुष्यन्त कुमार
दुष्यंत कुमार त्यागी (१९३३-१९७५) एक हिन्दी कवि और ग़ज़लकार थे। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की।