उसे चाँद ख़ूबसूरत लगता है
जबकि मुझे लुभाती हैं
तारों की क़तारें
तारे मेरी रोज़ी हैं
जब अंधेरी रात में तारे खिलें
और मेरी दूरबीन के पहलू में गिरें
तो ही आगे बढ़ पाया मेरा काम
मेरे बैंक अकाउंट की गुल्लक में
सारे सिक्के तारों ने ही डाले हैं
और चाँद?
वह एक आवारा घुसपैठिया है
चाँद के आगे तारे
फीके पड़ जाते हैं
जो तारे पहले ही बहुत धुंधले हैं,
वे दूरबीन से भी नज़र नहीं आते हैं
चाँदनी, तारों के खेत में
चिड़ियों जैसी है
मेरी फ़सल को चट कर जाती है
तारों की ही नेमत हैं
सगाई की अँगूठी
और आर्टिफ़िशियल सस्ता हार
मेरा उसे दिया हर उपहार
मेरा कवि कभी और
ले लेगा
चाँद से
कवियों वाले बिम्ब उधार
काश,
कम-अज़-कम
एक बार
वह चाँद को कह दे—
“चाँद, थोड़ा कम नज़र आया करो!”
देवेश पथ सारिया की कविता 'ईश्वर (?) को नसीहत'