दूर से आती आवाज़,
जिसके स्वर स्पष्ट नहीं,
बस एक गूँज है—हवा में तैरती हुई।
लगता है जिस हवा पर यह सवार हो आती है,
उसी पर लौट जाती है।

एक आभास-सा है, जैसे मेरे एकान्त में किसी के होने का।

एक रहस्य जैसे अन्धेरा खोलता हो मुझ पर
और फिर ढक लेता हो अपने आग़ोश में।

रहस्य के इस गोपन में
मैं भी अपना होना दर्ज कराता हूँ
और फिर मैं भी गुम हो जाता हूँ
इसी के साथ सन्नाट अन्धेरे में।