‘Ektarfa Prem Mein Ladki’, a poem by Joshnaa Banerjee Adwanii
बादलों पर टिका देती है ऐंठे हुए सोमवार
साग के डण्ठलों में ढूँढ लेती है उसकी उँगलियाँ
जिससे करती है प्रेम
उमस में फूँकती है अपनी बाँहें और सहेजती
है एक अनछुआ स्पर्श
मृतप्राय ठण्डी निस्तब्ध रातों को मनाती है
अकेलेपन का उत्सव
चींटियों को डालती है आटा और कह देती है
अपने मन की बात
शीशे में निहारती है अपने स्तन और खुला छोड़
देती है अपनी इच्छाओं के बेलगाम घोड़े
एकतरफ़ा प्रेम में लड़की की खाल इतनी पारदर्शी
हो गई है कि दिख जाता है उसका कुपोषण
इन दिनों फ़िराक़ में है कि कैसे हथियाई जाये
उस लड़के की कमीज़ जिसे रातों में पहनकर
सो सके
एकतरफ़ा प्रेम में लड़की ज़िम्मेदार बन रही है!
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