‘Ektarfa Premikaaein’, a poem by Ritu Niranjan

वे नही देतीं तिरस्कार से हाँकी हुई
सनक-भरी धमकियाँ,
न ही पकड़ती हैं उसकी कलाई
कहीं भी राह चलते में,
वे नही देतीं मृत्यु कुण्ड में
प्राणों की आहूतियाँ,
न ही उन निर्दोष सूरतों पर
उड़ेलती हैं एसिड की बोतलें

दुनियावी सौदों से विमुक्त
वे मोह की चाशनी में डूबकर बनातीं गुलाब जामुन
और खिलातीं उसे बहुत लाड़ से,
चाँद रात के तीसरे पहर में लिखतीं प्रेम पातियाँ
और रख देतीं इक डायरी की ओट में छिपाकर,
सफ़ेद सूती रूमाल पर काढ़तीं
बेल बूटे
कुछ कलियाँ
उकेरतीं एक कोने में उसका नाम
टाँक देतीं उसमें अपना सारा नेह
और रख देतीं उसकी जेब में
तोहफ़े की शक्ल देकर

वे बड़े चाव से सुनतीं उसकी सारी प्रेम कविताएँ
जो उसने लिखी थीं कभी अपनी पूर्व प्रेमिकाओं पर,
उन्हें याद है कि
वो अपने किस दोस्त को जानवर कहकर पुकारता
और किस प्रेमिका को बादाम हलवा,
वे ज़माने भर में लिए घूमतीं फ्रेंडशिप बैंड
ओढ़ लेतीं किरदार दोस्ती का
और बाँध देती उसकी कलाई पर अपने अथाह प्रेम का सागर,
तो कभी लगाकर छाती से
पोंछतीं उसके गालों पर ढुलकते आँसू
और बन जातीं माँ,
सर्द रातों में छीलकर मूँगफली
रख देती हैं चार दाने ज़्यादा
उसकी हथेली पर,
उसके सफ़र पर जाने पर पूछतीं बार-बार
‘घर कब तक आओगे’
यह भूलकर कि अब वो दोनों अलग-अलग शहरों में रहते हैं
अधरों के मुहाने रखतीं
ख़याल रखने की हज़ार हिदायतें
और बहा देती हैैं अपने सारे जज़्बात
सकुचाहटों के दरिया में

और इस तरह
डुबाकर अपना अस्तित्व
एकतरफ़ा प्रेमिकाएँ
तैरती रहती हैं
एक अनहुए प्रेम में…

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