‘Ektarfa Pyar’, a poem by Pratima Singh
एक लड़की
इकतरफ़ा इश्क़ में,
हर एहसास को जीती
बेतहाशा भागती,
लड़के ने कभी बन्द नहीं की
गुंजाइश की खिड़की,
कभी-कभी दरवाज़े से
भी उछाल देता.. उम्मीद की गेंद
लड़की की तरफ़,
दोनो इश्क़ के तलबगार,
लेकिन अलग-अलग थी
दोनों के इश्क़ की सूरत ज़रूरत,
लड़के की ख़्वाहिश,
लड़की के जिस्म… मन… इच्छाओं के
रंग रूप बदलने लगी,
उसके वजूद की किरचें
हवा में घुलने लगीं,
लड़की अब गीली मिट्टी हो गयी थी
और लड़का साँचा,
अचानक मिट्टी ने आकार लेना
छोड़ दिया
ज़रा-सी छुअन से दरकने लगी
साँचा अभ्यस्त था,
मिट्टी के गीलेपन का,
मिट्टी अकड़ती गयी,
टूटता गया उसका साँचे से रिश्ता..
न लड़के ने सोचा, न लड़की ने ग़ौर किया,
नमी की वजह ही नदारद थी…
वो अब ख़ुद सी कहाँ रही,
अक्सर ख़ुद को खोकर
किसी को पाने की ख़्वाहिशें
यूँ ही दम तोड़ देती हैं।