Short Story: ‘Elvis Died at the Florida Barber College’ – Roger Dean Kiser
अनुवाद: उपमा ‘ऋचा’

दस बरस की उम्र में, मैं यह समझ नहीं पाता था कि एल्विस प्रेस्ली में ऐसा क्या था, जो हम बाक़ी लड़कों में नहीं! मेरा मतलब, उसके पास भी हम सबकी तरह एक सिर, दो हाथ और दो पैर थे। फिर उसमें ऐसा क्या छिपा था कि अनाथालय की तमाम हमउम्र लड़कियाँ उसकी उंगलियों पर नाचने को तैयार रहती थीं!

शनिवार की सुबह तक़रीबन नौ बजे मैंने वहाँ के एक बड़े लड़के यूजीन कोरेथेर्स से पूछने का फैसला किया कि आख़िर वो कौन-सी बात थी, जो एल्विस प्रेस्ली को ख़ास बनाती थी। उसने मुझे बताया कि दरअसल इसकी दो वज़हें थीं- एक एल्विस के घुँघराले बाल और दूसरी उसकी मस्तानी चाल…

लगभग आधा घंटे बाद अनाथालय के सब लड़कों को एक जगह बुलाया गया और उनसे कहा गया कि हम सब फ्लॉरिडा के क़स्बे जेक्सनविल जा रहे हैं, जहाँ हमें मिलेंगे- नए चमचमाते जूते और एक नया हेयर-कट। यह सुनते ही मेरे भीतर एक ख़्याल कई टन वजनी पत्थर की तरह टकराया- “अगर एल्विस का हेयर-कट ही उसकी ख़ासियत है, तो मैं भी आज वही हेयर-कट करवाऊँगा।”

रास्ते भर मैं इसी बारे में बात करता रहा। मैंने सबको बता दिया था। यहाँ तक कि जो मेट्रन हमें अनाथालय से क़स्बे तक ले जा रही थीं, उन्हें भी मैंने बताया कि जल्द ही मैं एल्विस प्रेस्ली जैसा दिखने जा रहा हूँ। कि मैं भी उसकी तरह घूमना सीख जाऊँगा। कि मैं भी एक दिन उसके जैसा अमीर और मशहूर बन जाऊँगा।

जब मुझे नए जूते मिले, मेरी मुस्कान कानों तक फैल रही थी और मैं स्टोर-हाउस के चक्कर लगाते हुए हर किसी को अपने जूतों की चमक दिखाने की कोशिश कर रहा था। वो सचमुच बहुत अच्छे थे और ख़ूब चमचमा रहे थे। लेकिन मुझे सबसे अच्छा लग रहा था स्टोर-हाउस की एक्स-रे मशीन में अपने पैर की हड्डियाँ देखना। ओह वे कितनी हरी नज़र आ रही थीं।

अब मैं अपने नए हेयर-कट का और ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकता था। चूंकि अब मुझे नए जूते मिल गए थे, मुझे जल्दी अनाथालय लौटकर एल्विस की तरह चलने का अभ्यास भी करना था।

आख़िरकार हम उस दुकान पर पहुँचे, जहाँ हमारे बाल मुफ़्त में कटने वाले थे। क्योंकि हम अनाथ थे। ख़ैर मैं दौड़कर एक बाल काटने वाले के पास गया और उछलने लगा। ताकि वह मुझे उठाकर ऊँची कुर्सी पर बैठा दे। मैंने उस आदमी को देखा और अपने चेहरे पर एक बड़ी-सी मुस्कान चस्पा करते हुए उससे पूछा, “मुझे एल्विस प्रेस्ली जैसा हेयर-कट चाहिए। क्या तुम मेरे बालों को एल्विस जैसा बना सकते हो?”

“नन्हे दोस्त, देखते हैं कि मैं क्या कर सकता हूँ”, उसने कहा।

जैसे ही उसने मेरे बाल काटने शुरू किए, मेरी ख़ुशी की सीमा न रही। लेकिन तभी मेट्रन ने उसे अपने पास आने का इशारा किया। फिर वो, उसके कान में कुछ फुसफुसाईं। उसने सिर हिलाया, मानो उन्हें किसी काम के लिए ‘ना’ कह रहा हो। वो ऑफिस में बैठे एक दूसरे आदमी के पास गईं और उससे कुछ कहने लगीं। तब वो ठिगना आदमी झूमता-सा आया और उस आदमी से कुछ कहने लगा, जिसे मेरे बाल काटने थे। इसके बाद जो अगली बात मुझे मालूम हुई, वह यह थी कि उन्हें हम लोगों को एल्विस हेयर-कट देने की इज़ाजत नहीं है। फिर मैंने उसे कंघा उठाते देखा और फिर अपने बालों को ज़मीन पर गिरते…

कुछ ही देर में मेरे सिर पर से बाल पूरी तरह ग़ायब हो चुके थे। अपना काम ख़त्म करने के बाद उसने मुझे पाउडर की खुशबुओं से तर कर दिया और मेरे हाथ में तांबे का एक सिक्का रखते हुए बोला,

“अपने लिए बाहर दुकान से कैंडी ले लेना।”

मैंने उसका सिक्का उसे वापस थमा दिया और कह दिया कि “मैं भूखा नहीं हूँ।”

“ओह बच्चे, मुझे माफ़ कर दो।” मुझे कुर्सी से उतरते हुए वह बोला।

“मैं कोई बच्चा नहीं हूँ।” आँख से बहते आँसुओं को पोंछते हुए मैंने जवाब दिया।

मैं ज़मीन पर बैठ गया और अपने जूतों पर से बाल झाड़ने लगा, ताकि वे नए और चमकीले नज़र आते रह सकें। फिर मैं उठा, पैंट झाड़ी और दरवाज़े की ओर बढ़ गया। मेट्रन मुझे देखकर हँसने लगीं, मानो मैं कोई जोकर हूँ। जिस आदमी ने मेरे बाल कटे थे, वो चिल्लाया,

“त… तुम चुड़ैल हो।”

वो पलटकर उससे भी ज़्यादा ज़ोर से चिल्लाई और गुस्से से पैर फटकारती हुई तेज़ी में ऑफिस की ओर चली गईं। मेरे बाल काटने वाले ने बेबसी से दीवार पर मुक्का मारा और धीरे-धीरे चलता हुआ बाहर आ गया, जहाँ मैं खड़ा था। उसने मुझे देखा, मुस्कुराया और मेरा गंजा सिर सहला दिया। मैंने अपनी आँसुओं से तरबतर आँखों से उसे देखा और पूछा,

“क्या तुम्हें मालूम है कि एल्विस प्रेस्ली की हड्डियाँ हरी दिखती हैं, कि नहीं?”

यह भी पढ़ें: एच. जी. वेल्स की कहानी ‘द कंट्री ऑफ़ द ब्लाइंड’

Recommended Book:

उपमा 'ऋचा'
पिछले एक दशक से लेखन क्षेत्र में सक्रिय। वागर्थ, द वायर, फेमिना, कादंबिनी, अहा ज़िंदगी, सखी, इंडिया वाटर पोर्टल, साहित्यिकी आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कविता, कहानी और आलेखों का प्रकाशन। पुस्तकें- इन्दिरा गांधी की जीवनी, ‘एक थी इंदिरा’ का लेखन. ‘भारत का इतिहास ‘ (मूल माइकल एडवर्ड/ हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया), ‘मत्वेया कोझेम्याकिन की ज़िंदगी’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ द लाइफ़ ऑफ़ मत्वेया कोझेम्याकिन) ‘स्वीकार’ (मूल मैक्सिम गोर्की/ 'कन्फेशन') का अनुवाद. अन्ना बर्न्स की मैन बुकर प्राइज़ से सम्मानित कृति ‘मिल्कमैन’ के हिन्दी अनुवाद ‘ग्वाला’ में सह-अनुवादक. मैक्सिम गोर्की की संस्मरणात्मक रचना 'लिट्रेरी पोर्ट्रेट', जॉन विल्सन की कृति ‘इंडिया कॉकर्ड’, राबर्ट सर्विस की जीवनी ‘लेनिन’ और एफ़. एस. ग्राउज़ की एतिहासिक महत्व की किताब ‘मथुरा : ए डिस्ट्रिक्ट मेमायर’ का अनुवाद प्रकाशनाधीन. ‘अतएव’ नामक ब्लॉग एवं ‘अथ’ नामक यूट्यूब चैनल का संचालन... सम्प्रति- स्वतंत्र पत्रकार एवम् अनुवादक