Excerpt from a poem ‘To Duration’ by Peter Handke
अनुवाद: उपमा ‘ऋचा’
न जाने कब से
मैं दूरियों के बारे में लिखना चाहता था।
कोई निबन्ध नहीं
कोई नाटक नहीं
कोई कहानी भी नहीं
मेरी दूरियाँ हमेशा
कविता को पुकारती थीं।
मैं कविता के साथ ख़ुद से सवाल करना चाहता था
याद रखना चाहता था ख़ुद को कविता के साथ
यह दावा और वसूली भी कविता के साथ कविता की शक्ल में
कि दूरियाँ क्या होती हैं…
शायद इसीलिए मैं
बार-बार, बार-बार
अनुभव करता हूँ
दूरियों का…
दूरियाँ, सेंट मैरी फ़ाउन्टेन पर शुरुआती वसंत में
दूरियाँ, पोर्टे ड्यूटिल पर सर्द रातों में
दूरियाँ, कार्स्ट के सूरज की धूप में
और दूरियाँ,
प्यार के बाद सुबह होने से पहले घर के रास्ते में…
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