अनुवाद: धर्मवीर भारती
मेरी आँखें निकाल दो
फिर भी मैं तुम्हें देख लूँगा
मेरे कानों में सीसा उड़ेल दो
पर तुम्हारी आवाज़ मुझ तक पहुँचेगी
पगहीन मैं तुम तक पहुँचकर रहूँगा
वाणीहीन मैं तुम तक अपनी पुकार पहुँचा दूँगा
तोड़ दो मरे हाथ
पर तुम्हें मैं फिर भी घेर
लूँगा और अपने हृदय से इस प्रकार पकड़ लूँगा
जैसे उंगलियों से
हृदय की गति रोक दो और मस्तिष्क धड़कने लगेगा
और अगर मेरे मस्तिष्क को जलाकर खाक कर दो-
तब अपनी नसों में प्रवाहित रक्त की
बूँदों पर मैं तुम्हें वहन करूँगा।