“कौन हो तुम?”
“तुम कौन हो?”
“हर-हर महादेव… हर-हर महादेव!”
“हर-हर महादेव!”
“सुबूत क्या है?”
“सुबूत…? मेरा नाम धरमचंद है।”
“यह कोई सुबूत नहीं।”
“चार वेदों में से कोई भी बात मुझसे पूछ लो।”
“हम वेदों को नहीं जानते… सुबूत दो।”
“क्या?”
“पायजामा ढीला करो।”
पायजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया- “मार डालो… मार डालो…”
“ठहरो… ठहरो… मैं तुम्हारा भाई हूँ… भगवान की क़सम, तुम्हारा भाई हूँ।”
“तो यह क्या सिलसिला है?”
“जिस इलाक़े से मैं आ रहा हूँ, वह हमारे दुश्मनों का है… इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा, सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए… एक यही चीज़ ग़लत हो गई है, बाकी मैं बिल्कुल ठीक हूँ…”
“उड़ा दो ग़लती को…”
ग़लती उड़ा दी गई… धरमचंद भी साथ ही उड़ गया।