गांधी की लाठी नहीं,
साथी सही बन जाओ तुम।
बापू की फिर बात नहीं,
अहिंसा को अपनाओ तुम।

बंधु है, कुछ है बैरी?
कुछ तो है इनसे नाता जी!
आपस में ही लड़ने को,
है कौन यहाँ फिर आता जी।
धर्मों के भेद से पहले,
बंधु-बंधु चिल्लाओ तुम।
बापू की फिर बात नहीं,
अपनों को अपनाओ तुम।

भ्रष्ट यहाँ, झूठे यहाँ,
करते सभी घोटाला जी!
हो राजनीति या मधुशाला,
लगता सब पे ही ताला जी।
गाँधी की ही प्रतिमा को
जो कभी माला पहनाओ तुम
बापू की फिर बात नहीं,
सत्य को अपनाओ तुम।

मन की गलियां, बैरन सी,
शहर गाँव भी मैले जी।
बच्चे बूढ़े सब है मौन,
अरे, कोई यहाँ फिर कह लो जी!
और कुछ कहने से भी पहले
झाड़ू वहीं उठाओ तुम!
बापू की फिर बात नहीं,
स्वच्छता को अपनाओ तुम।