घर संसार में घुसते ही
पहिचान बतानी होती है
उसकी आहट सुन
पत्नी-बच्चे पूछेंगे— ‘कौन?’
‘मैं हूँ’—वह कहता है
तब दरवाज़ा खुलता है।
घर उसका शिविर
जहाँ घायल होकर वह लौटता है।
रबर की चप्पल को
छेद कर कोई जूते का खीला उसका तलुआ छेद गया है।
पैर से पट्टी बॉंध सुस्ताकर, कुछ खाकर
दूसरे दिन अपने घर का पूरा दरवाज़ा खोलकर
वह बाहर निकला
अखिल संसार में उसकी आहट हुई
दबे पाँव नहीं
खाँसा और कराहा
‘कौन?’—यह किसी ने नहीं पूछा
सड़क के कुत्ते ने पहिचानकर पूँछ हिलायी
किराने वाला उसे देखकर मुस्कुराया
मुस्कुराया तो वह भी।
एक पान ठेले के सामने
कुछ ज़्यादा देर खड़े होकर
उधार पान माँगा
और पान खाते हुए
कुछ देर खड़े होकर
फिर कुछ ज़्यादा देर खड़े होकर
परास्त हो गया।
विनोद कुमार शुक्ल की कविता 'कोई अधूरा पूरा नहीं होता'