मैं लेना चाहता हूँ
सूरज से कुछ रोशनी
और बन जाना चाहता हूँ एक सुबह
जो किसी चिड़िया के चहचहाने की वजह बन जाए

चाँद से कुछ चमक ले लूँ,
और बन जाऊँ चमकती लहरें
जो किनारे पर जाकर
कछुओं के बच्चों को
अपनी गोद में बिठाकर
समंदर तक छोड़ आएँ

मैं रात से कुछ
अंधेरा भी लेना चाहूँगा
और बन जाना चाहूँगा एक नींद
जो बच्चों को सपनों की दुनिया में ले जा सके

मैं पेड़ों से उनकी शाखाएं चाहता हूँ,
कुछ समय के लिए
और बन जाना चाहता हूँ एक झूला
जिस पर एक बाप
अपने बच्चे को एक उड़ान का झोटा दे पाए

मैं परिंदों से
उनके पंख लेना चाहता हूँ
ताकि मैं एक लंबी उड़ान भर सकूँ
वही उड़ान
जो किसी गिलहरी ने अपने सपने में
देखी होगी!

मुदित श्रीवास्तव
मुदित श्रीवास्तव भोपाल में रहते हैं। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और कॉलेज में सहायक प्राध्यापक भी रहे हैं। साहित्य से लगाव के कारण बाल पत्रिका ‘इकतारा’ से जुड़े हैं और अभी द्विमासी पत्रिका ‘साइकिल’ के लिये कहानियाँ भी लिखते हैं। इसके अलावा मुदित को फोटोग्राफी और रंगमंच में रुचि है।